12 June 2005

कविता-3

माँ

दे थपकियाँ प्यार से,
साथ लोरी के सुलाया था जिसने
अपनी नर्म पलकों के बीच
ख्वाब सा सजाया था जिसने
गली मुहल्लों के बच्चों से
लड़ते हुए छुड़ाया था जिसने
बहते घावों पर अपने हाथों से
मरहम लगाया था जिसने
बाबा की डाँट के डर से
आँचल की ओट में छिपाया था जिसने
मचल जाने पर चंदा मामा की-
कहानियों से बहलाया था जिसने
शरारत करने पर-
काले चोर से डराया था जिसने
रूठ जाने पर-

दे गालों पे चुंबन मनाया था जिसने
बुरी नज़र से बचाने के लिए
काजल का टीका लगाया था जिसने
स्वागत में बहू के झट
आरती का थाल सजाया था जिसने
वो ममता का सागर,
वो प्यार का घना साया
आज तन्हाई में ए–दिल
तुझे ये कौन याद आया !
***

-हेमन्त रिछारिया

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